प्रत्येक मूर्ति का एक-सा आभामण्डल होगा,एक-सा विश्व होगा।
" कुछ मूर्तियाँ अच्छे ऊर्जास्थानों का निर्माण करेंगी यानी मूर्तियों के स्थापित होने के बाद हीअच्छे ऊर्जास्थानों का निर्माण होगा।और कुछ मूर्तियों के संदर्भ में ऐसा होगा कि पहले शुध्द और पवित्र स्थानों का निर्माण होगा और वे ऊर्जास्थान मूर्तियों को आमंत्रित करेंगे।उन ऊर्जा स्थानों के कारण गुरुशक्तियाँ वहाँ मूर्तियों के रूप में जाकर स्थायी होंगी और वे स्थान और अधिक गति से कार्यरत हो जाएँगे। आत्माओं की एक बड़ी सामूहिकता इनके आसपास के भू-भाग पर निर्मित होगी।ठीक इसी प्रकार से ,कुछ मूर्तियाँ तुम अपने इच्छा से स्थापित करोगे और कुछ मूर्तियों को गुरु शक्तियाँ तुम्हारे हाथों से स्थापित करा लेंगी। और वे कब स्थापित हो गईं,तुम्हे उसका पता भी नहीं चलेगा।"
" प्रत्येक मूर्ति का एक-सा आभामण्डल होगा,एक-सा विश्व होगा।इनकेआसपास एक शांत , कल्याणकारी, सकारात्मक ऊर्जा से भरा,चैतन्यपूर्ण स्पंदनों से भरा हुआ वातावरण सदैव होगा। एक शांत विश्व में जो भी आत्मा जाकर 'आत्मानंद ' का अनुभव करेगी,वह वहाँ पर बार-बार जाना चाहेगी।उनके आसपास सदैव एक-सा शांत ,प्रसन्नचित्त वातावरण होगा।बाहरी जगत का प्रभाव उनके आसपास भी नहीं होगा।इसलिए वैचारिक प्रदूषणरूपी रेगिस्तान में वेस्थान तो मीठे पानी के झरने जैसे प्रतीत होंगे।कई मृत आत्माएँ जो ' मोक्ष ' के लिए प्रतीक्षारत होंगी, वे उन्हें सर्वप्रथम पहचानेंगी और वे अन्य किसी के शरीर को माध्यम बनाकर उनके दर्शन करने आएँगी।और ऐसी आत्माएँ केवल मोक्ष मांगेंगी क्योंकि वे जानती होंगी किस स्थान पर क्या माँगना चाहिए।और उन्हें ' मोक्ष ' माँगते देखकर सामान्य मनुष्यों को भी मोक्ष माँगने की इच्छा होगी और वे अपने जीवनकाल में ही मोक्ष की स्थिति को प्राप्त करेंगे।कुछ समय के बाद प्रत्येक मनुष्य को व्यक्तिगत मार्गदर्शन करना संभव न हो सकेगा। ऐसे समय वे मूर्तियाँ वह व्यक्तिगत मार्गदर्शन देने का भी कार्य करेंगी।लेकिन वह उस,दर्शन के लिए आने वाले मनुष्य के ' भाव ' पर ही निर्भर होगा।....
हि.स.यो-४
पु-३१५
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