महाशिवरात्रि 2018 के स्वामी जी के प्रवचन के कुछ अंश
आए हुए सभी पुण्य आत्माओं को मेरा नमस्कार।
आज महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर 12 वे गहन ध्यान अनुष्ठान के समापन दिवस पर हम सब यहां एकत्रित हुए हैं। महाशिवरात्रि का दिन आत्माओं का उत्सव है ।और इस उत्सव में ही मैं चाहता हूं कि आप आत्मा बन कर शामिल हो। इस गहन ध्यान अनुष्ठान में सिंगापुर के आश्रम के मंगल मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई है । मेरी स्थिति आज उस माँ जजैसी है जो खूब मेहनत से खीर बनाती है अपने बच्चों के लिए , ठीक उसी प्रकार से 45 दिन के अनुष्ठान में कुछ अनुभूतियो की , कुछ ज्ञान की, कुछ चैतन्यकी खीर मैं आपको परोसने जा रहा हूं। लेकिन उसके पूर्व एक सूचना है आप इस प्रवचन को सुनिए मत , अनुभव करें अनुभूति की मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं जो कुछ बताने जा रहा हूं वो इनंफॉर्मेशन नहीं है ज्ञान है । और उसको अनुभव ही किया जा सकता है अनुभूति की जा सकती है । तो मेरी आपसे प्रार्थना है आज आप आपका सारा चित्त आपको क्या फील हो रहा है , क्या अनुभव हो रहा है ईस ओर लगाइए । आपको अनुभव होगा आप्तेश्वर महादेव आपके ही अंदर भीतर ही बैठे हुए हैं ।अब मानव सभ्यता की बात करें तो मानव सभ्यता खुब धीरे-धीरे क्रमबद्ध तरीके से विकसित हुई है । हजारों सालों में विकसित हुई है ।आज यह दूर-दूर में जो देश दिखाई दे रहे हैं वे सब देश एक समय एक ही साथ थे । समय के साथ-साथ धीरे-धीरे वो दूर दूर होते चले गए। और हमारे पूर्वज भी आदि काल से गुफाओं में रहते थे । शिकार करके अपना उदरनिर्वाह चलाते थे। पशु पक्षियों को मार के अपना पेट भरते थे। मानव सभ्यता खूब धीरे-धीरे विकसित हुई है । उनमें से कोई महान आत्माएं कोई महामानव अपनी बस्ती से दूर जाकर एकांत में रहे ।जंगल में रहे और जंगल में रहकर निसर्ग के सानिध्य में आए और निसर्ग के सानिध्य में आते आते उन्होंने अनुभव किया कि निसर्ग के सानिध्य में विचार कम आते हैं , और धीरे-धीरे वे निसर्ग के साथ समरस होने लगे , और समरस होते होते उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ knowledge प्राप्त हुआ कि इन पंचमहाभूतों से ही ये शरीर बना हुआ है, और अगर हम इन पंचमहाभूतों से समरसता स्थापित कर ले तो हमें अच्छा लगता है। हमारी समस्या दूर होती है । तो कुछ लोग वहां जाकर सि्थि्त हो गए आए ही नहीं । लेकिन उनमेसे कुछ लोग वापस बस्ती में आ गए , और बस्ती में आकर के उन्होंने अपना ज्ञान ,अपना knowladge उन्हें जो कुछ नया पता लगा जो जानकारी मिली थी वो सब जानकारी अपने समाज के लोगों को दी। और ध्यान साधना के कारण ,एकांत में रहने के कारण , मौन में रहने के कारण ,उनके अंदर एक प्रकार का आकर्षण प्राप्त हुआ। और उसी आकर्षण के कारण समाज के लोग उनकी तरफ आकर्षित हुए । और उसके बाद में लौग उनकी बातें महत्त्व देकर सुनने लगे । बहुत कम लोग थे जो उनको उनकी जीवन काल मे जान पाए ।और वो चले जाने के बाद में उन्हीं को देवताओं का दर्जा मिल गया और उन्हें उन्होंने बताए हुए उपदेश उस प्रकार से उपासना पदतीया बन गई। नए नए सुविधाएं जुटाने लग गए । नए नए साधन जुटाने लग गए। मनुष्य को अधिक से अधिक सुविधाएं प्रदान करना। ठीक उसी प्रकार से उस समय उद्देश्य क्या था, मनुष्य के अंदर की मनुष्यता को विकसित करना उपासना पद्धति का एक ही उद्देश्य था, मनुष्य के अंदर की मनुष्यता जागरुक करना । मनुष्य को जगाना उसी के लिए सारे प्रयास होते रहे ।वह उपासना पद्तीयां धीरे धीरे करके धर्म का रुप ले लिया।वो धर्म कहलाने लगे । लेकिन वास्तव में धर्म तो एक ही है ।मनुष्य धर्म उसी मनुष्य धर्म को, उसी मनुष्यता को जागरुक करने के लिए यह उपासना पद्धति है। सभी उपासना पद्धति मनुष्य के भीतर की मनुष्यता जगाना, मनुष्य को अंतर्मुखी करना । एक ही उद्देश्य से सारी उपासना पद्धति बनी।
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