आत्मधर्म
" आत्मधर्म " जागृत होने पर मनुष्य के भीतर का "प्रेमतत्व "भी बहने लग जाता है । प्रेमतत्व बहने लगने के बाद मनुष्य सभी से ही प्रेम करने लग जाता है । वह सब में ही परमात्मा के दर्शन करने लग जाता है और उसे सर्वत्र शक्ति के दर्शन होने लग जाते है । फिर इस प्रेमतत्व के कारण ही आध्यात्मिक प्रगति होने लगती है और मनुष्य अपने " मैं " के बूँद के अस्तित्व से सागर के अस्तित्व में बदल जाता है ।
आध्यात्मिक सत्य
संदर्भ :-- मनुष्य धर्म
परमपूज्य गुरुदेव
संदर्भ :-- मनुष्य धर्म
परमपूज्य गुरुदेव
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