स्वामी जी के जोधपुर प्रवास के दौरान घटित एक अद्भुत और चमत्कारिक घटना

स्वामी जी के अनुसार.........................
सुबह-सुबह जब जोधपुर पहुँचे और पर्यटक विभाग के सेंटर पर गए और जोधपुर दर्शन के लिए हमने टिकट निकाली तो बाद में मालूम पड़ा, आज मौसम विभाग की चेतावनी है कि आज एक बहुत बड़ा तूफान आने वाला है और इसी कारण सारे बाजार बंद है।इसी कारण बस भी नहीं चलने वाली है। लेकिन बुकिंग करा रखा था। तो उन्होंने केवल हमारे लिए ही विभाग की एक जीप हमें दी थी।हम उस जीप से ही जोधपुर दर्शन को निकले।वह जीप का ड्राईवर भी भयभीत ही था। वह आते ही बोला,"साहब,आज बड़ा तूफान आने वाला है।" तो मैंने उसे कहा," दो तूफान एक साथ नहीं आते हैं।अब मैं आ गया,अब तूफान नहींआएगा।"तो वह ड्राईवर एकदम चिढ़ गया। "ऐसा कभी होता है क्या? एक मनुष्य कभी तूफान हो सकता है क्या ? और रेडियो,न्यूज पेपर्स सभी बता रहे हैं ,बार-बार चेतावनी दे रहेे हैं, यह सब गलत है क्या? मैंने कहा ," तू आज मेरे साथ है ही। तू ही देख ले कैसे तूफान आता है।" लेकिन वह मेरी बात से सहमत नहीं था। लेकिन पत्नी और बच्चे पूर्ण आश्वस्त थे कि" तूफान नहीं आएगा" बोला है तो अब वह नहीं आएगा। "पत्नी बोली ,"तुम्हारे गुरुओं की ही इच्छा होगी कि यहां तूफान न आए । इसीलिए यह तूफान आने के तीन महिने पहले से ही अपनी बराबर यही तारीख यहां आने के लिए निश्चित कर दी थी।तुम्हें यहां भेजना भी उनकी ही योजना का एक अंग है। विश्व चेतना भी कैसे बराबर सभी जगह संतुलन बनाए रखती है। आज आप अकेले ही थोड़े आए हैं ? आप के साथ आपके ग्यारह गुरु भी हैं, तो यह गुरुओं की सामूहिकता बराबर यहां संतुलन करेगी ही। वास्तव में तो गुरु शक्तियों को ही यहां आना था, वे तो हिमालय से बाहर निकल ही नहीं सकती तो उन्होंने माध्यम बनाया और यहां पहुंच गईं और आपके मुख से भी निकल गया कि दो तूफान कभी एक साथ नहीं आ सकते। मैंने कहा "पता नहीं,कई बार ऐसा अनायास ही मुंह से निकल जाता है।मानों जैसे कोई शक्ति अपने से बुलवा रही है और अपने मुंह पर अपना ही नियंत्रण नहीं है। अन्यथा, मैं कभी भी चलती गाड़ी में ड्राईवर से अधिक बात करना पसंद नहीं करता हूं और ड्राईवर चिढ़ जाए,ऐसी बात तो कभी करुंगा ही नहीं। लेकिन पता नहीं आज ऐसा क्यों मुंह से निकल गया। इस दौरान हमने जोधपुर शहर देखा एक अच्छे स्थान पर भोजन भी किया। लेकिन ड्राईवर अभी भी डरा हुआ ही था।बाद में हम किला देखने जा रहे थे। उसने होटल से एक अखबार लाकर भी मुझे दिखाया और बोला,"मैं साहाब ऐसे नहीं डर रहा था।यह देखो, आज के अखबार में भी सतर्कता की सूचना दी है। मेरी बड़ी बिकट स्थिति है।तूफान आया तो मैं आपको छोड़ कर भी नहीं भाग सकता। क्योंकि आप हमारे मेहमान हैं और मैं ड्यूटी पर हूं और आपके साथ रहना ही पड़ेगा। इसलिए आप कृपया जल्दी किले से नीचे आ जाइए। मैंने उसे समझाना ठीक नहीं समझा क्योंकि वह एकदम ही भयभीत था। किले देखने के दौरान ही मैंने पत्नी को बोला, "तू बच्चों को संग्राहलय वगैरे दिखा, मैं कुछ समय यहां पर एकांत में बैठना चाहता हूं। और मैं एकांत में बैठकर ध्यान करने लग गया।
जब मैं ध्यान करने बैठा तो लगा, मैं एक खाली पाईप हूं । पानी एक ओर से आ रहा है और दूसरी ओर से जा रहा है और पानी जैसा चैतन्य का प्रवाह लगातार गुरुओं की ओर से आ रहा है और वातावरण में जा रहा था। यह क्या हो रहा था, मुझे पता नहीं चल रहा था। लेकिन मैं केवल एक दर्शक जैसा सब कुछ देख रहा था।बाद मे जो चैतन्य शरीर से निकल रहा था, उसने एक बवंडर का रुप ले लिया। बवंडर अंदर की ओर रहता है।यह चैतन्य का बवंडर बाहर की ओर था और उसका आकार प्रतिक्षण बढ़ता ही जा रहा था और चित्त से यह सब महसूस कर रहा था। उस बवंडर ने सारे जोधपुर शहर को व्याप लिया और वह ऊपर और ऊपर की ओर जा रहा था और वह इतना ऊपर चला गया कि शहर भी ऊपर से दिख नहीं रहा था। बाद में वह बवंडर पाकिस्तान की दिशा में चला गया। थोड़ी देर बाद सब शांत हो गया। और बाद में धीरे सब एकदम शांत-शांत सा लग रहा था। कुछ देर बाद में मैंने आंखें खोलकर देखा तो पत्नी और बच्चे मेरे उठने की राह देख रहे थे। अब शाम हो गई थी और हम किले से नीचे उतर रहे थे। हम बातें करते-करते नीचे आए तो देखा वह ड्राईवर गेट पर ही खड़ा हमारा इंतजार कर रहा था। उसने आकर ही मेरे पैर छुए और बोला "आपकी बात सच निकली, तूफान नहीं आया। तूफान पाकिस्तान की ओर मूड़ गया। आप आपका परिचय दो।आप जो दिख रहे हो , वो आप नहीं हो। मैं अज्ञानी आपको पहचान न सका। मैं एक मुस्लिम हूं और एक पीर बाबा को मानता हूं लेकिन फिर भी मैं डर गया था। आपके माध्यम से ही मुझे पीर बाबा ने संकेत भी दिया था। आप साक्षात पीरबाबा के रुप में ही मुझे मिले।आपको छोड़कर मैं पास के होटल में जाकर छुप गया था और जब रेडियो में यह समाचार मिला कि तूफान पाकिस्तान की ओर चला गया तो मुझे आपकी बात याद आई कि दो तूफान एक स
ाथ नहीं आ सकते। मैं दौड़ा-दौड़ा बाहर आया और आपकी राह देखते बैठा हूं। आपके छोटे-छोटे बच्चों ने भी आप पर विश्वास किया और मैंने नहीं। मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे समझाते हुए कहा कि ,"मैं भी गुरुमार्गी ही हूं। और मेरा मेरे गुरु पर पूर्ण विश्वास है। इसलिए मैंने यह समझ लिया कि मैं गुरु से जुड़ा हूआ हूं। इसलिए मेरा तो तूफान से बाल बांका भी नहीं हो सकता। अब रही बात तूफान की "मुझे यहां भेजकर वास्तव में गुरु ने इस स्धान को सुरक्षित किया था और उनकी यह योजना मुझे मालूम पड़ गई थी। इसलिए हम निश्चिंत थे।बच्चों का भी मेरे पर विश्वास था, मेरा मेरे गुरु पर विश्वास था। हमारा विश्वास ही हमारे ही विश्वास के आभामंडल को विकसित करता है। अब वह ड्राईवर बेफिक्र था। वह बोला , "आपके सानिध्य में मुझे आनंद आ रहा है
"स्वामी जी द्वारा वर्णित..इस ब्रह्मांड में व्याप्त विश्वचैतन्य की इस अद्भूत और चमत्कारिक घटना को पढ़कर जो भी मैंने अपने आप में एहसास किया उसे शब्दशः अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता । ऐसे आध्यात्मिक जीवंत गुरुवर और गुरुमां के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वंदन और नमन।

"हिमालय का समर्पण योग भाग-6/124
    

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