आत्मज्ञान ही सत्यज्ञान
इस जगत में केवल’आत्मज्ञान’ ही सत्यज्ञान है। मनुष्य इतना भ्रमित हो गया है कि इस आत्मा की अनुभूति के ज्ञान को ज्ञान समजने के बजाय पुस्तक के ज्ञान को ज्ञान समज रहा है। वह यह नहीं जानता की पुस्तक का ज्ञान केवल जानकारी मात्र है। जो हो चुका है, उसकी जानकारी। जानकारी कभी अनुभूति नहीं करॉ सकती। ‘अनुभूति’ ही एकमात्र ज्ञान है जो पुस्तक से कभी प्राप्त नहीं हो सकती है।
बाबा स्वामी
HSY1 pg 340
HSY1 pg 340
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