समाधि

     आद्यात्मीकता में आने के बाद मनुष्य केवल अपने बारे में नही सोचता । उसका चित्त विशाल हो जाता है और अन्य लोगों की भलाई के बारे में सोचता है फिर एक आध्यात्मिक व्यक्ति से समाजसेवा अनायास ही हो जाती है और उसमे कर्ता का भाव भी नही रहता ।

आध्यात्मिक सत्य
परमपूज्य स्वामीजी 

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