मधुचैतन्य

  • परमात्मा यानी विश्व के अणु-अणु मे फैली हुई  चेतना।
  • सदैव परमात्मा के  स्वरूप  से  एकरूपता रखो। ऐसा करने मे  सफल  हुए  तो आजके परमात्मा को  पहचान  पाओगे ।
  • भक्तिमाग॔ की  पराकाष्ठा है -देवता के  शरीर पर चित्त न रखते  हुए  देवता के उस पार  के स्वरुप पर  चित्त  रखा  जाय।
  • सारे  धर्मो का   एक ही निचोड है - मनुष्य धम॔ की  प्राप्ति; और परमात्मा का  माध्यम कोई विशेष धम॔ का  नही  होता , सबका  होता है । कोई भी धार्मिक कट्टरता विशुद्धी चक्र को खराब करती है ।
  • गुरु वो  अधिकृत माध्यम है जिस माध्यम के  द्वारा हम विश्व चेतना के  साथ जुड़ते है ।
  • जितना रोल स्काफ॔ बांधते वक्त आयने का  है, उतना ही रोल गुरू  का  है। जिनके पास  जाके  हमारी इनवड॔ जर्नी  (अंतर्मुखी यात्रा शुरू होती है ।
  • समर्पण यानी गुरू के माध्यम से अपने आप को समर्पित होना ।
  • निर्विचार स्थिति पाने के लिए गुरू की आवश्यकता नही है । प्रभु ध्यान  मे गुरू से  सिर्फ ज्ञान  नही, पर  संस्कार भी संक्रमित होते है,  जो निर्विचार स्थिति के अनेकवीध उपायों से भी  संभव  नही है ।
  • आत्म साक्षात्कार के  बाद पहले अपने  दोष  दिखते है और दूसरों के  दोष दिखना बंद हो जाते है ।
  • किसी स्वार्थवश प्रार्थना की तो निचे  आ  सकते है। कोई भी  अपेक्षा से  साधना  मत करो ।
  • मोक्षप्रापती के लिए शरीर आवश्यक है ।
  • ध्यान का  क्षेत्र पुरा  भाव   का है।
  • किसी भी चीज मे अती मे मत  जाओ ।
  • पुस्तके परमात्मा तक  पहुचा सकती है , परमात्मा का अनुभव  नही  करा  सकती ।
  • अहंकार के  साथ  प्रार्थना करते है तब कबुल नही होती ।
  • भूतों को भी  मालुम रहता है कि मोक्ष कहा से मील सकता है ।
  • दुख और सुख  एक स्थिती है । एक मांगोगे दूसरी  आएगी ही ।
  • कितना भी अच्छा ध्यान लगा तो तो भी दूसरे दिन भी ध्यान  करना ही है ।
  • ध्यान को  शौक सरीखा  अपनाओ। अपेक्षा से किया  या तो  कट  जायेगा ।
  • खुद के कल्याण के बगैर दूसरों का कल्याण किया ही  नही  जा  सकता।
  • जब  तक  पुण्यकम॔ है तब  तक  सानिध्य मिलता है ।

मधुचैतन्य 
Jan,  Feb, March 15

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