आत्मसुख

'आत्मसुख' यानी शरीर की संपूर्ण सकारात्मक भाव की अवस्था है , उसमें आपने जीवन में क्या पाया है , वही अनुभव कराती है। कई बार हम दूसरों के लिए दुःखी होते हैं , लेकिन वे दुःख दूसरों के होते हैं , उन्हें ही वे दूर करना होंगे। आप तो केवल एक मार्गदर्शक का कार्य कर सकते हो।बस इतना ही आपके हाथों में है। क्योंकि प्रत्येक आत्मा आखिर आपने  पूर्वजन्म के कर्म 'नष्ट' करने को ही जन्म लेती है। बस , इस जन्म में नए कर्म खड़े न हो , यह मार्ग आप उसे बता सकते हैं। वह बताना भी वह आत्मा यह मार्ग मानेगी, यह अपेक्षा के साथ नहीं , क्योंकि सद्गुरु रूपी परमात्मा के दर्शन , उससे अनुभूति पाना और अनुभूति से मोक्ष की स्थिति पाना और अंत में पूर्ण 'आत्मसुख' का अनुभव करना यह सब एक जन्म में अपेक्षा करना व्यर्थ हैं। जन्मों-जन्मों की यह प्रक्रिया होती है।
   
बाबा स्वामी
*आत्मेश्वर (आत्मा ही ईश्वर है) पृष्ठ:६८*

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