परमात्मा के चैतन्य का अनुभव
एक बार एक स्थान पर परमात्मा के चैतन्य का अनुभव करना आ गया तो फिर विश्व मे कही भी परमात्मा को अनुभव कर सकते है। पर यह सरल लगने वाली प्रक्रिया बड़ी कठिन है। और वह सरल प्रक्रिया इसलिए कठिन लगती है क्यूँकि हम हीं कठिन है। हम रहते कही है और सोचते कहि है। यह एक विसंगत जीवन है। जीवन में रहने और होने मे कोई ताल मेल ही नहीं है। जब शरीर और चित का ताल मेल हो जाए और हम चित से जहाँ पर है वही पर शरीर से भी रहे तो ध्यान ख़ुद- ब- ख़ुद लग जायेगा।
बाबा स्वामी
HSY 1 pg 324
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