मनुष्य योनि एक है,तो धर्म अलग कैसे हो सकते हैं ?

"अपनी आत्मा के द्वारा चुने हुए धर्म के मार्ग पर ही चलना होगा | आत्मा जानती है कि किस मार्ग से मैं परमात्मा तक पहुँच सकती हूँ |'--
धर्म को ही पकडे रखना नहीं है | कट्टर धार्मिक व्यक्ति कभी भी परमात्मा को नहीं पा सकता है ,पर धर्म के बिना परमात्मा की प्राप्ति भी नहीं हो सकती है | धर्म मार्ग है परमात्मा तक पहुँचने का | और ये मार्ग अनेक है | सभी धर्मों का उद्देश्य निर्विचारिता की स्तिथि प्राप्त करना है और उस स्तिथि से ध्यान की शुरुआत होती है |
ये सभी बाहरी धर्म बनाए गए हैं भीतरी मनुष्य धर्म को जागृत करने के लिए | और वास्तव में भीतरी धर्म एक ही है - आत्मधर्म | मनुष्य योनि एक है,तो धर्म अलग कैसे हो सकते हैं ? आवश्यकता है उस स्तर तक पहुँचने की जहाँ पहुँचकर ही यह बात समझ में आ सकती है |
मनुष्य के प्रत्येक जन्म के साथ बाहरी उपासना पद्धति वाले धर्म बदलते रहते हैं | इसलिए जो सद्गुरु इस बात को जानते हैं और समझते हैं ,उन्होंने सदैव धर्म से उठकर ही कार्य किया है  | 

हि.स.यो.२/५७ 

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