पतंग

पतंग आकाश में कितनी ही ऊँचाई पर जाए तो भी उसे एक पतले धागे का सहारा होता है जिससे वह पतंग भटक नहीं जाती है। और धागे के सहारे वापस अपने स्थान पर आ जाती है। पतंग के जीवन में डोर का बड़ा ही महत्त्व है , वैसे ही मेरे जीवन में तेरा महत्त्व है। जब भी लगे मैं अधिक ऊँचा जा रहा हूँ, मुझे नीचे ला देना। अधिकुत माध्यम बनने के बाद सतत गुरुशक्तियों से चैतन्य का प्रवाह आते रहता है। उस प्रवाह में रहकर ध्यान में न जाते हुए कार्य करना कठीण है। सदैव याद रखना , चैतन्य तो गुरु का प्रसाद है। इस बाँटना है और बाँटना के लिए ही बल मिल रहा है, इसे खाते नहीं बैठना है। इसलिए मेरी ध्यान की स्थिति का सदैव ध्यान रख। ध्यान में स्थिति यह हिती है कि हिमालय के कैलाश पर्वत पर पहुँच गए, यह अनुभव होता है। और वहाँ पहुँच जाने के बाद वापस आने की सुध भी नहीं रहती है क्योंकि शरीर का नियंत्रण पूर्ण ही समाप्त हो जाता है। जब शरीर ही नहीं है तो वापस क्या जाना! वहाँ के वातावरण में जाकर यह याद भी नहीं रहता कि अभी यहाँ रहने का समय नहीं आया है , हमें वापस भी जाना है। मुझे इस स्थान पर तेरे मदद की आवश्यकता है। जब लगे कि ऐसे स्थान पर मेरी पतंग पहुँच गई है , तब मुझे नीचे खिंचना और निच्छित समय पर खिंचना क्योंकि अन्यथा तेरी पकड़ से भी दूर चला जाऊँगा । पत्नी बड़ी गभीरता से सब बातें सुन रही थी।

भाग ६ - १३८/१३९

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