समर्पण ध्यान का उदेश्य
'समर्पण ध्यान' का उदेश्य ही आपको आत्मनिर्भर बनाना है, आप किसी के उपर भी dependent ना रहें।*
- मुजे मेरे प्रवास के दौरान कई बार कई ऊपासना पध्धतिओ के प्रमुखो से मिलने का होता है, तो मैं उनसे कहेता हूँ, आपकी ऊपासना पध्धति तो ध्यान के उपर आधारीत थी, ये कर्मकांड कहाँ से आ गया? कर्मकांड से मुक्त होने के लिए, कर्मकांड से फ्री होने के लिए, गुरूओने ये ऊपासना पध्धति का प्रारंभ किया था। तो वे भी कहतें हैं, *स्वामीजी, सुबह से लेकर रात तक जितने भी कर्मकांड है, वो माध्यम थे जिनके माध्यम से ध्यान किया जाता था, मेडिटेशन्स किया जाता था। जिस के माध्यम से प्रत्येक साधक, प्रत्येक श्रावक अंतर्मुखी होते थे।*
- मुजे मेरे प्रवास के दौरान कई बार कई ऊपासना पध्धतिओ के प्रमुखो से मिलने का होता है, तो मैं उनसे कहेता हूँ, आपकी ऊपासना पध्धति तो ध्यान के उपर आधारीत थी, ये कर्मकांड कहाँ से आ गया? कर्मकांड से मुक्त होने के लिए, कर्मकांड से फ्री होने के लिए, गुरूओने ये ऊपासना पध्धति का प्रारंभ किया था। तो वे भी कहतें हैं, *स्वामीजी, सुबह से लेकर रात तक जितने भी कर्मकांड है, वो माध्यम थे जिनके माध्यम से ध्यान किया जाता था, मेडिटेशन्स किया जाता था। जिस के माध्यम से प्रत्येक साधक, प्रत्येक श्रावक अंतर्मुखी होते थे।*
- *आध्यात्म का मुल सार आज आपको बता रहा हूँ!* शरीरभाव को कम करना, आत्मभाव को वृध्धिगत करना ये सब ऊपासना पध्धतिओ का मूल सार था, लोकन धीरे धीरे धीरे वो शरीरभाव होता गया और आत्मभाव कम कम कम होता गया।
- यहाँ पे भी इच्छा करते है की हम प्रार्थना करें, हम ध्यान करें, ध्यान से हमारा ये कार्य हो जाएगा, ध्यान से हमारी लडकी की शादी हो जाएगी, ध्यान से मेरे लडके को नौकरी लग जाएगी, *वास्तव में थोडा इसको समझो। जैसे पानी उपर से नीचे की ओर बहेता है, तो रास्ते में जितने भी खड्डे है उन खड्डोमें automatically पानी भरा जाएगा। खड्डो को बुलाना नहीं पडेगा ए पानी आजा आजा मेरे में भर जा। नहीं, पानी को बुलाने की आवश्यकता नहीं है, पानी को करने की आवश्यकता नहीं है की मैं खड्डा हूँ, मुजे तकलिफ है।*
- *एक बार आप प्रयोग कर के देखो ना, आज ही कर के देखो - कोई ईच्छा मत रखो, कोई अपेक्षा मत रखो, एकदम रिक्त हो जाओ, आप भूल जाओ की आप शरिर हो।*
- जिस स्थान पर आप एकदम रिक्त हो कर बैठ जाओ, आप एकदम शांत होकर बैठ जाओ - *चैतन्य को बराबर पता है, कहाँ खड्डे हैं, वो बराबर भर देगा। उसको बताने की आवश्यकता नहीं है कहाँ खड्डे है, खड्डे उभारने की आवश्यकता नहीं है। चित्त समस्याओं पर ले जाने की आवश्यकता नहीं है, आपका सारा चित्त केवल और केवल चैतन्य पर होना चाहीए।*
- *'समर्पण ध्यान' में हम साधको को समस्याओं की बातें करने को इसीलिए मना करतें हैं, क्योंकि जितने भी समस्याएँ हैं, जितने भी problems है, वो आपके शरीरभाव के कारण है।*
- अगर आप के भीतर का शरीरभाव ही समाप्त हो जाएगा, शरिर ही समाप्त हो जाएगा तो कुछ भी समस्या नहीं रहेगी। *शरीरभाव छुट जाना यानी मर जाना नहीं है।*
- यहाँ पे भी इच्छा करते है की हम प्रार्थना करें, हम ध्यान करें, ध्यान से हमारा ये कार्य हो जाएगा, ध्यान से हमारी लडकी की शादी हो जाएगी, ध्यान से मेरे लडके को नौकरी लग जाएगी, *वास्तव में थोडा इसको समझो। जैसे पानी उपर से नीचे की ओर बहेता है, तो रास्ते में जितने भी खड्डे है उन खड्डोमें automatically पानी भरा जाएगा। खड्डो को बुलाना नहीं पडेगा ए पानी आजा आजा मेरे में भर जा। नहीं, पानी को बुलाने की आवश्यकता नहीं है, पानी को करने की आवश्यकता नहीं है की मैं खड्डा हूँ, मुजे तकलिफ है।*
- *एक बार आप प्रयोग कर के देखो ना, आज ही कर के देखो - कोई ईच्छा मत रखो, कोई अपेक्षा मत रखो, एकदम रिक्त हो जाओ, आप भूल जाओ की आप शरिर हो।*
- जिस स्थान पर आप एकदम रिक्त हो कर बैठ जाओ, आप एकदम शांत होकर बैठ जाओ - *चैतन्य को बराबर पता है, कहाँ खड्डे हैं, वो बराबर भर देगा। उसको बताने की आवश्यकता नहीं है कहाँ खड्डे है, खड्डे उभारने की आवश्यकता नहीं है। चित्त समस्याओं पर ले जाने की आवश्यकता नहीं है, आपका सारा चित्त केवल और केवल चैतन्य पर होना चाहीए।*
- *'समर्पण ध्यान' में हम साधको को समस्याओं की बातें करने को इसीलिए मना करतें हैं, क्योंकि जितने भी समस्याएँ हैं, जितने भी problems है, वो आपके शरीरभाव के कारण है।*
- अगर आप के भीतर का शरीरभाव ही समाप्त हो जाएगा, शरिर ही समाप्त हो जाएगा तो कुछ भी समस्या नहीं रहेगी। *शरीरभाव छुट जाना यानी मर जाना नहीं है।*
*श्री बाबा स्वामी*
*चैतन्य महोत्सव २०१६*
*चैतन्य महोत्सव २०१६*
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