आत्मीय भाव बढ़

आत्मभाव हम स्वयं नहीं बढ़ा सकते हैं , इसके लिए हमें पवित्र और शुद्ध आत्माओं के संगत में रहना पड़ता है। सब संगत का ही असर होता है। हिमालय में जाना कठीण है लेकिन वहाँ की कठिनाइयों पर विजय पाकर जो वहाँ पहुँच गए वे अच्छी संगत को पा गए क्योंकि वहाँ अच्छी आत्माओं की सामुहिकता है। हिमालय में पहुँचना भी एक जन्म में संभव नहीं है। क्योंकि एक जन्म में इच्छा करते हैं जाने की , दूसरे जन्म में स्थिती बनाते हैं कि जा सके और तीसरे जन्म में जाने का प्रयास करते हैं और रास्ता में शरीर साथ छोड़ देता है लेकिन मूत्यु के बाद भी उनकी दिशा ऊध्र्वगामी होती है। इसलिए अगले जन्म में वे अवश्य वहाँ तक पहुँचने में सफल हो जाते है। और फिर वहाँ जाकर जो पवित्र आत्माओं की संगत मिलती है तो उनकी सामुहिकता में आत्मीय भाव बढ़ जाता है और आध्यात्मिक स्थिती बन जाती है। वहाँ तक पहुँचने में सारे प्रयत्न हैं। एक बार पहुँच गए कि कोई भी वापस नहीं आता है। मेरी पत्नी मेरी आध्यात्मिक यात्रा का आधार थी। वह मेरे जीवन में आने के बाद ही कोई निर्णय मैं ले पाया था।

भाग - ६ - १३३/१३४

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