ध्यान की पहली सीढी ही समाधान

ध्यान की पहली सीढी ही समाधान है | संपूर्ण समाधान को प्राप्त किए बिना ध्यान में प्रगति नहीं हो सकती है | मनुष्य समाधान और असमाधान के बीच में ही झूलते रहता है | मनुष्य में दोनों प्रवृतियाँ समभाग में होती है, इसीलिए वह संपूर्ण समाधानी नहीं बन सकता | और संपूर्ण समाधानी तब बनेगा , जब उसे संपूर्ण समाधानी लोगों की सामूहिकता प्राप्त हो जाए | यानि संपूर्ण समाधान भी केवल सामूहिकता में ही प्राप्त हो सकता है | क्योंकि मनुष्य को समाधान नहीं हेगा तो फिर अतृप्ति रहेगी | अतृप्ति रहेगी तो चित तृप्ति की ओर होगा और जिस प्रकार की अतृप्ति है, उस प्रकार के विचार आएँगे और चित विचारों में भटकेगा | और जब चित ही स्थिर नहीं है, तो ध्यान कैसे लग सकता है ? इसलिए , समाधान व असमाधान समभाग में होने के कारण कोई मनुष्य ध्यान नहीं कर सकता है | ध्यान तो समाधानी लोगों की सामूहिकता में लग जाता है | फिर प्रश्न आता है, समाधानी लोगों की सामूहिकता लाए कहाँ से? वह सामूहिकता हमें गुरुचरण पर मिलती है | यह वह स्थान है, जहाँ समाधानी , तृप्त आत्माओं की बड़ी सामूहिकता सदैव विधमान होती है | यह वह स्थान है, जहाँ से गुरु की शक्तियों से अपने-आपको जोड़ा जा सकता है |

हि.स.यो-१
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