सद्गुरू की मूर्ति में प्राण-प्रतिष्ठा सद्गुरू के ही द्वारा

भारतीय संस्कृती में गुरु को देवतुल्य माना जाता है। उनके देहत्याग के बाद उनकी मूर्ति तो बनाई जाती है लेकिन *वह प्रतीक होती है , जिवंत नही होती।* अधिकांशतया प्रतिमा का बाह्य रूप सद्गुरू का होता है और उसकी *प्राण-प्रतिष्ठा* किसी और साधु ने की होती है। *यह विसंगत है।*, इससे *प्राण ऊर्जा में फर्क रहता है।*
आत्मसाक्षात्कारी संतों और सद्गुरूओं ने अपनी मूर्तियों में *स्वयं ही प्राण-प्रतिष्ठा की होती तो वे मूर्तियाँ चैतन्य की दृष्टि से अप्रतिम होतीं।*

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