मनुष्य का चित्त
प्रत्येक सुबह मनुष्य का चित्त भी एक छोटे बच्चे की तरह होता है। आप सुबह-सुबह चित को जो भी आकार दो वैसा ही वह दिनभर बना रहता है। *सुबह उठने के बाद के हमारे दो धण्टे बड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं।*
*अगर हमें सुबह के समय दो धण्टे अपने चित्त को भीतर रखना आ गया तो फिर स्थिर रहना (चित का) और शुद्ध रहना स्वयं ही हो जाएगा।*
बाबा स्वामी
Comments
Post a Comment