प्रत्येक आत्मा परमात्मा का अंश
" प्रत्येक आत्मा परमात्मा का अंश होती है और क्या अच्छा है और क्या अच्छा नहीं है, इसका ग्यान प्रत्येक आत्मा को होता ही है। कौन सा कर्म करना योग्य है, कौन सा कर्म करना अयोग्य है, इसका ग्यान भी प्रत्येक आत्मा को होता ही है।
लेकिन मनुष्य, जन्म के बाद अपने शरीर के प्रभाव में इतना आ जाता है कि वह अपने-आपको शरीर ही समझने लग जाता है और फीर वह शरीर के भाव में आकर ही सारे कर्म करता है।
शरीर द्वारा किए गए कर्म पर माया, मोह, रिश्तेदार, संबंधी सभी तो प्रभाव डालते हैं और शरीर के प्रभाव में आकर ऐसे कार्य करता है, जो उसने नहीं करना चाहिए और बाद में उसके फल आने पर फछतावा करता है।"
हि.स.योग, 6-पेज. 369.
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