धर्म और अध्यात्म

लोग धर्म और अध्यात्म को एक ही समझते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है। धर्म सीढ़ी है तो अध्यात्म 'मकान' है, जहाँ प्रत्येक को अपने-अपने उपासना पध्दती के द्वारा पहुँचना होता है। उपासना पध्दति मार्ग है लेकिन आध्यात्म मंजिल है। प्रत्येक आध्यात्मिक व्यक्ति किसी न किसी उपासना पध्दति का सहारा लेकर ही वहाँ तक पहुँचा होता है। हमारा 'अध्यात्म' से आशय आत्मिक ज्ञान से है। धार्मिक व्यक्ति तो समाज में हजारों मिल जाएँगे लेकिन 'आध्यात्मिक व्यक्ति' कम ही हो पाते है।
कोई भी *कट्टर धार्मिक व्यक्ति कभी भी आध्यात्मिक स्थिति को नहीं पा सकता है क्योंकि वह तो सीढ़ी को ही पकड़कर बैठ गया।* जो सीढ़ी पर ही बैठ गया वह ऊपरी मंजिल पर कैसे पहुँचेगा? धार्मिक व्यक्ति आगे चलकर आध्यात्मिक व्यक्ति हो सकता है पर कोई आध्यात्मिक व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता है। 

*आत्मेश्वर(आत्मा ही ईश्वर है) पृष्ठ:३२*

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