श्री गुरुशक्तिधाम

यह स्थान शक्तिधाम बने , व्यक्तिधाम नहीं , यह मेरे गुरुओं की इच्छा है। इस शक्तिधाम की प्रेरणा जैसे ही गुरूशक्तियों ने मुझे दी , मैंने प्रार्थना की , "गुरुदेव , शक्तिधाम में आपकी प्रतिमा लगाने की अनुमति प्रदान करें।" उन्होंने समझाया , "मेरी प्रतिमा में तू मेरे प्राण डाल सकता है क्या ? नहीं। फिर मेरी प्रतिमा में तेरे प्राण कैसे डालेगा? और यह विसंगती होगी। मै तेरे करीब हूँ। हाँ ,अगर यह स्थान तेरे लिए बन रहा है , तो मेरी प्रतिमा सही है। " मैंने गुरुदेव को  कहाँ , "वह स्थान मैंने हृदय में बना लिया है। और बाहर के स्थान की मुझे आवश्यकता नहीं है। मैं आँखे बंद कर लेता हूँ , आपके दर्शन मुझे हो जाते हैं।"
"यह शक्तिधाम तू आनेवाले भविष्य के साधकों के लिए बना रहा है। वे तेरे करीब हैं , मुझसे दूर हैं। इसलिए शक्तियों का माध्यम जितने पास का हो , उतना पकड़ना आसान लगता है। इसलिए साधकों को गुरू करीब का लगता है। यह आज की नहीं , भविष्य की भी आवश्यकता है। हमें सदैव अपना उद्देश्य पवित्र व बहुजनहिताय रखना चाहिए। इसलिए पवित्र उद्देश्य से कार्य कर और तू तेरी प्रतिमा में मेरी और गुरूशक्तियों की अनुभूति कर , तो यही अनुभूति आनेवाले समय में सत्यखोजक आत्माएँ करेंगी। गुरूशक्तियों का उद्देश बहुत बड़ा है। तू मुझे ही पकड़कर मत रह। तू तेरी इच्छा क्या है , वह छोड़ दे, शक्तीयाँ क्या चाहती है, वह देख। हमें सिर्फ गुरूशक्तियों की अगुआई करनी होती है , उनका कार्य तो वे माध्यम हमें बनाकर कर ही लेती हैं। अब सब छोड़कर गुरूशक्तियों का माध्यम बन।"

बाबा स्वामी
आध्यात्मिक सत्य पृष्ठ २१६

   
  

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