गुरुमाँ


आज आपको जो "गुरुसानिध्य" मिल रहा है ,वह केवल "गुरुमाँ "के कारण । अन्यथा जिसका शरीरभाव संपूर्ण: छूट गया हो वह शरीर में भी कैसे रह सकता है ! आपके लिए भले ही वह "गुरुमाँ"हो ,मेरे लिए तो वो केवल और केवल "माँ "है । आज जहाँ तक भी मैं पहूँचा हूँ , इस सबके पीछे की उर्जाशक्ती वह ही है । तुम्हे ध्यान में कैसे जाए ,यह समस्या है तो मैं ध्यान में से कैसे बाहर आऊँ ,यह समस्या है ।आज जो विश्वस्तर पर जो वटवृक्ष दिख रहा है ,उसका "बीज" श्री शीवबाबा का होगा पर "माली " तो गुरुमाँ ही है जिसने पौधे को वटवृक्ष बनाया है । . . .

परमपूज्य स्वामीजी
[ आत्मेश्वर ५१/५२]

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