समर्पण ध्यान [ संंस्कार ]

इस मार्ग में कुछ भी बाहरी उपदेश नही है । क्या करो ,क्या ना करो ,कुछ भी नही हैं । इसमें सीधे मनुष्य की आत्मा को ही जागृत किया जाता है ।और आत्मा को जागृत रखने के लिए साधना करने को कहा जाता है । बशर्ते वह मनुष्य इस संस्कार को ग्रहण करने के लिए राजी हो । यह संस्कार "जबरदस्ती "किसी को भी दिया नही जा सकता है । संंस्कार को पाना मनुष्य का अपना निर्णय होता है । "समर्पण संस्कार "की अनुभूति प्राप्त होने के बाद मनुष्य अपनी उपासना पद्धति को समझ सकता है । .

बाबा स्वामी 
१८/०१/२०१८
गुरुवार 

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