मनुष्य का जीवन
मनुष्य का जीवन भी ऐसा ही है | नाव की तरह जब " मैं" के कम पानी में होता है तो जीवन कठिन मालूम होता है ,पर जब परमात्मा को समर्पित होता है तो सामूहिक शक्ति की मुख्य धारा में आ जाता है और जीवन आसान हो जाता है | वहाँ नाव चलानी पड़ती है ,यहाँ नाव स्वयं ही चलती है | फिर अपने प्रयत्नों का कोई स्थान नहीं होता | नाव चलती रहती है, नदी की मुख्य धारा के अनुसार ही बहती है |
हि.स.यो.२/३८
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