ऊर्जा केंद्रों

" इन नकारात्मक शक्तियों के केंद्रों के ऊपर जाने पर सकारात्मक शक्तियों के ऊर्जा केंद्र भी विध्यमान थे।  जब कोई भी मनुष्य सकारात्मक कार्य करता है, तो इन सकारात्मक ऊर्जा केंद्रों से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। अपने जीवनकाल में  जिन आत्माओं ने सकारात्मक कार्य किए है, उन्हीं सभी आत्माओं की सकारात्मक ऊर्जा के केंद्र बन गए,  इन ऊर्जा केंद्रों की संख्या भी अच्छी है।
बस् इन तक पहुँचना थोडा कठिन है। इन तक किसी भी मनुष्य का अकेला फहुँचना थोडा कठिन है, लेकिन अगर सामुहीकता में प्रयत्न किए जाए तो यह संभव हो सखता है। कोई भी मनुष्य कोई भी सकारात्मक कार्य करता है, तो इन केंद्रों से उसे अधिक सकारात्मक कार्य करने की ऊर्जा मिलना प्रारंभ हो जाती है। और फिर उस मनुष्य से और अधिक सकारात्मक कार्य होना प्रारंभ हो जाते हैं। ये सकारात्मक ऊर्जा केंद्र भी सामूहिक प्रयासों से नीर्माण हुए हैँ।"

" मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि मनुष्य तो देव और दानव दोनों के ही गुण लेकर निर्माण हुआ है, अगर मनुष्य को दानवों की संगत मिल जाए तो दानव हो जाता है, देव की संगत मिल जाए तो देव हो जाता है;  वह किनके साथ रहता है, उसी पर सब कुछ निर्भर होता है।
ये नकारात्मक ऊर्जा के केंद्र हों या सकारात्मक ऊर्जा के केंद्र हों, ये दोनों ही निष्क्रिय  स्थिति में हैं, ये स्वयं सक्रिय रूप से कार्य करने की स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि ये किए गए कार्यों के कारण निर्माण हुए हैं, लेकिन ये निष्क्रिय होने पर भी कोई भी सक्रिय माध्यम उन्हें मिल जाता है, वे उसके माध्यम से कार्यरत हो जाते हैं। ये माध्यम से ही कार्य करा पाते हैं, ये स्वयं कार्य नहीं करते हैं।"

हि.स.योग , 6 - पेज. 341.

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