महत्व सद्गुरु के शरीर का नहीं है, उनकी आध्यात्मिक स्थिति का होता है |
हम अगर चित के ध्वारा , नामजाप के ध्वारा , मंत्र के ध्वारा ,
किसी भी तरीके से सद्गुरु जुड़ जाते हैं तो जुड़ने के साथ-साथ हम उनकी
स्थिति से भी जुड़ जाते हैं | महत्व सद्गुरु के शरीर का नहीं है, उनकी
आध्यात्मिक स्थिति का होता है | हम उनकी आध्यात्मिक स्थिति से जुड़ जाते
हैं और फिर वे शरीरभाव से परे होते हैं तो हम भी उनके सानिध्य में
अपने-आपको शरीरभाव से परे महसूस करने लग जाते हैं | जब शरीर का भाव ही कम
हो गया तो शरीर किस परिस्थिति में से गुजर रहा है , इसका क्या महत्व है ?
क्योंकि फिर हम केवल शरीर से परिस्थिति में से निकलते रहते हैं लेकिन हमारा
चित उन खराब परिस्थितियों में नहीं होता है तो हमें उन परिस्थितियों का
एहसास नहीं होता है |
भाग ५
भाग ५
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