हवन चिकित्सा


१) एक वेबसाइट रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फोर्मिक एल्डिहाइड नामक गॅस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टेरिया और जिवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गॅस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड की जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

२) टौटिक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गई अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घण्टे हवन में बैठा जाए अथवा हवन के धुएँ से शरीर का संपर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते है और शरीर शुद्ध होता है।

३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इसपर एक रिसर्च करी की क्या वाकई हवन से वातावरण शुध्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही। उन्होंने ग्रंथ में वर्णित हवन सामुग्री जुटाइ और जलने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है।
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएँ पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी १किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम ही नही हुए पर जैसे ही उपर १/२किलो हवन सामुग्री डालकर जलाई गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टेरिया का स्तर ९४% कम हो गया। यहीं नही , उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजूद जिवाणुओं का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाजे खोलने के बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६प्रतिशत कम था।
बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएँ का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर ३०दिन बाद भी  सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट ऐथ्नोफार्मोकोलॉजी के शोध पत्र (Research Journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसम्बर २००७ में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों के फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले बैक्टेरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

स्त्रोत --- *समर्पण आश्रम दांडी*
*॥जय बाबा स्वामी॥*

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