गुरू ही परमात्मा

"हमें जीवन में जो भी शिक्षा देता है , उसे ही गुरू मानते हैं। वास्तव में , गुरू तो जीवन में एक ही बार आते हैं। जो गुरू आपको आत्मसाक्षात्कार दे सके , जो आपकी आत्मा को जन्म दे सके , वहीं गुरू होते हैं। जब मनुष्य की एक ही आत्मा है , तो उसे जन्म देने वाला एक ही होना चाहिए। वास्तव में एक ही होता है , लेकिन उस आत्मा के गुरू तक पहुँचने के लिए शरीर को कई गुरू करना होते हैं।"
"गुरू से आत्मा को अनुभूति होती है , इसलिए साधक अपने गुरू को ही परमात्मा मानते हैं , क्योंकि गुरू को ही परमात्मा मानने से हमारी गुणग्राहकता , हमारी रिसिव्हींग , हमारी ग्रहण करने की क्षमता सर्वाधिक हो जाती हैं। वास्तव में , गुरू भी परमात्मा नहीं होता वह तो परमात्मा का माध्यम होता है।"

* बाबा स्वामी *
*हिमालय का समर्पण योग६/३८९*


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