समर्पण संस्कार

इस मार्ग में कुछ भी बाहरी उपदेश नहीं हैं। क्या करो, क्या ना करो, कुछ भी नही है। इसमें सीधे मनुष्य की आत्मा को ही जागृत कर दिया जाता है। और आत्मा को जागृत रखने के लिए साधना करने को कहा जाता है। बशर्ते वह मनुष्य इस संस्कार को ग्रहण करने के लिए राजी हो। यह संस्कार 'जबरदस्ती' किसी को भी दिया नहीं जा सकता है। संस्कार को पाना मनुष्य का अपना निर्णय होता है। 'समर्पण संस्कार' की अनुभूति प्राप्त होने के बाद मनुष्य अपनी उपासना पध्दती को समझ सकता है।

आत्मेश्वर(आत्मा ही ईश्वर है) पृष्ठ:३१


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