समर्पण ध्यान लोगों को सीखाना भी एक बहुत ही उम्दा सेवा का कार्य

समर्पण ध्यान लोगों को सीखाना भी एक बहुत ही उम्दा सेवा का कार्य है। भौतिक रूप से की गई सेवा कुछ समय तक रहती है, जबकि समर्पण ध्यान से हर एक मानव को शाश्वत स्वरूप प्राप्त होता है जिससे उसे अपने जीवन में किसी की मदद की आवश्यकता नहीं रहती है। वह खुद अपने आप में सक्षम हो जाता है।
दया और करूणा के बारे में विस्तृत रूप से समझाते हुए पू.स्वामीजी ने कहा कि करूणा दया का विशाल स्वरूप है , वैश्विक स्वरूप है। परमेश्वर सदैव हमारे उपर करूणा बरसाता है। दया की जाती है, जबकि करूणा बरसती है। दया मंझिल नहीं है , बल्कि करूणा तक पहुँचने की सीढ़ी है। करूणा का स्वरूप विशाल है और उसके माध्यम बनने के लिए पूर्ण संतुलित होने की आवश्यकता है।

*मधुचैतन्य अप्रैल २००६/३१*

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