अनुभूति क्या है ?
मेने गुरु ने मुझे इस कार्य करने के लिए अधिकूत किया है और अगर आगे भी तू ही यह अपना धर चलाए तो मैं इस अनुभूति को प्रसाद के रूप में समाज में जाकर बाँट सकता हूँ। प्रथम यह अनुभूति क्या है। यह अनुभव कर ले। इससे क्या बाँटने वाला हूँ यह मालूम हो सकता है। यह एक अनुभूति ने ही मेरे जीवन की दिशा ही बदल दी है। जो परमात्मा को बाहर खोजता रहता था, उस परमात्मा को भीतर ही पा लिया है । और परमात्मा को पा लिया , यह समाधान भी जीवन में प्राप्त हो गया है। इस प्रकार अनुभूति को प्राप्त कर साधनारत कई ऋषि , मुनि हिमालय में हैं लेकिन वे पाने के ही अधिकारी थे । इसलिए वे अनुभूति को पा लिए है लेकिन वे अनुभूति देने के लिए अधिकूत नहीं हैं। इसलिए यह अनुभूति दूसरे को नहीं करा सकते हैं।
भाग ६ - १३५/१३६
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